ख़ुमार बाराबंकवी
जन्म: 15 सितंबर 1919
निधन: 19 फ़रवरी 1999
उपनाम ख़ुमार
जन्म स्थान पीरबटावन मोहल्ला, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख
कृतियाँ शब-ए-ताब, हदीस-ए-दीगर, आतिश-ए-तर, रख्स-ए-मचा
विविध इनका असली नाम मोहम्मद हैदर खान है
15 सितम्बर वर्ष 1919 में जन्मे इस इंसान का नाम यूँ तो "मोहम्मद हैदर खान" था लेकिन शायद ही कोई उनके इस नाम से वाकिफ हो, वो तो मशहूर थे खुमार बाराबंकवी या खुमार साहब के नाम से | बाराबंकी जिले को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाने वाले अजीम शायर खुमार बाराबंकवी को प्यार से बेहद करीबी लोग 'दुल्लन' भी बुलाते थे |
"खुमार" ने शहर के सिटी इंटर कालेज से आठवीं तक शिक्षा ग्रहण की । इसके पश्चात वह राजकीय इंटर कालेज बाराबंकी जिसकी मान्यता उस समय हाईस्कूल तक ही थी वहां से कक्षा 10 की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात लखनऊ के जुबली इंटर कालेज में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा।
वर्ष 1938 से ही उन्होंने मुशायरों में भाग लेना शुरू कर दिया। खुमार ने अपना पहला मुशायरा बरेली में पढ़ा। उनका प्रथम शेर 'वाकिफ नहीं तुम अपनी निगाहों के असर से, इस राज को पूछो किसी बरबाद नजर से' था । ढाई वर्ष के अंतराल में ही वे पूरे मुल्क में प्रसिद्ध हो गये। उस दौर में जिगर मुरादाबादी उच्च कोटि के शायर माने जाते थे चूंकि खुमार ने 'तरन्नुम' से ही शुरूआत की, इसलिये शीघ्र ही वे जिगर मुरादाबादी के समकक्ष पहुंच गये। मुशायरों में अगर मजरूह सुलतानपुरी साहब के बाद अगर किसी को तवज्जो दी जाती थी तो वो "खुमार साहब" ही थे |
महान शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी आपके अज़ीज़ दोस्त थे| जितना बड़ा क़द विनम्रता की उतनी ही बड़ी मूरत, कभी-कभी तो मुशायरों में आपको घंटों तक ग़ज़ल पढ़नी पड़ती थी, लोग उठने ही नहीं देते थे | हर मिसरे के बाद "आदाब" कहने की इनकी अदा इन्हें बाकियों से मुख्तलिफ़ करती है । आपका अंदाजे बयां भी औरों से अलग था जो इनकी ख़ूबसूरत ग़ज़लों में और भी चार-चाँद लगाता था |
वैसे तो खुमार साहब मुशायरों को ही तवज्जो देते थे , लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ फ़िल्मों के गीत भी लिखे, जो उनकी ग़ज़लों की तरह ही उम्दा हैं |
हर दिल अजीज 'खुमार बाराबंकवी' को वर्ष 1942-43 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक एआर अख्तर ने मुम्बई बुला लिया। यहाँ से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र और वे फ़िल्मी दुनिया में एक सफल गीतकार के रूप में जुड़ गए।
आपने 1955 में फिल्म "रुख़साना" के लिये "शकील बदायूँनी" के साथ गाने लिखे थे। उससे पहले 1946 में फ़िल्म "शहंशाह " के एक गीत "चाह बरबाद करेगी" को "खुमार" साहब ने हीं लिखा था, जिसे संगीत से सजाया था "नौशाद" ने और अपनी आवाज़ दी थी गायकी के बेताज बादशाह "के०एल०सहगल" साहब ने |
फ़िल्म 'बारादरी' के लिये लिखा गया उनका यह गीत 'तस्वीर बनाता हूँ, तस्वीर नहीं बनती' आज भी लोगों के दिलों में बसा है। उन्होंने तमाम फ़िल्मों के लिये 'अपने किये पे कोई परेशान हो गया', 'एक दिल और तलबगार है बहुत', 'दिल की महफ़िल सजी है चले आइए', 'साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं','भुला नहीं देना', 'दर्द भरा दिल भर-भर आए', 'आग लग जाए इस ज़िन्दगी को, मोहब्बत की बस इतनी दास्ताँ है', 'आई बैरन बयार, कियो सोलह सिंगार', जैसे गीत लिखे जो खासे लोकप्रिय हए।
खुमार के ये गीत आज भी हमारी ज़िन्दगी में रस घोल देते हैं।
खुमार साहब ने चार पुस्तकें भी लिखीं ये पुस्तकें शब-ए-ताब, हदीस-ए-दीगर,आतिश-ए-तर और रख्स-ए-मचा है।
खुमार की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल की गई। उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, जिगर मुरादाबादी, उर्दू अवार्ड, उर्दू सेंटर कीनिया और अकादमी नवाये मीर उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद, मल्टी कल्चरल सेंटर ओसो कनाडा, अदबी संगम न्यूयार्क, दीन दयाल जालान सम्मान वाराणसी, कमर जलालवी एलाइड्स कालेज पाकिस्तान आदि ने सम्मानित किया।
वर्ष 1992 में दुबई में खुमार की प्रसिद्धि और कामयाबी के लिये जश्न मनाया गया। 25 सितम्बर 1993 को “बाराबंकी” जिले में जश्न-ए-खुमार का आयोजन किया गया। जिसमें तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा ने एक लाख की धनराशि व प्रशस्ति पत्र उन्हें देकर सम्मानित किया।
खुमार का अंतिम समय काफी कष्टप्रद रहा। मृत्यु के एक वर्ष पूर्व से ही उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था। 13 फरवरी 99 को उनकी हालत गंभीर हो गई। उन्हें लखनऊ के मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। जहाँ 19 फरवरी की रात उन्होंने आखिरी साँस ली। अब वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं।
उनकी एक ग़ज़ल जो काफी लोकप्रिय हुई,उनके शिल्प कौशल को अभिव्यक्त करता है:-
न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है ,
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकू ही सुकू है खुशी ही खुशी है,
तेरा गम सलामत मुझे क्या कमी है
वो मौज़ूद है और उनकी कमी है ,
मुहब्बत भी तहाई-ए-दायमी है
खटक गुदगुदगी का मज़ा दे रही है,
जिसे इश्क कहते है शायद यही है
चारागो के बदले मकान जल रहे है,
नया है ज़माना नई रोशनी है
जफ़ाओ पे घुट-घुट के चुप रहने वालो,
खामोशी जफ़ाओ की ताईद भी है
मेरे राह पर मुझको गुमराह कर दे,
सुना है कि मंज़िल करीब आ गई है
ख़ुमार-ए-बलानौश तू और तौबा,
तुझे ज़ाहिदो की नज़र लग गई है
उनके अन्य अशरारों की सूची:
• अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं |
• आँसूगदी से इश्क-ए-जवाँ को बचाइए |
• एक पल में एक सदी का मज़ा |
• एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए |
• ऐ मौत उन्हें भुलाए ज़माने गुज़र गये |
• ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही |
• कभी शेर-ओ-नगमा बनके |
• क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं |
• गमे-दुनिया बहुत इज़ारशाँ है |
• झुंझलाए है लजाए है |
• तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती |
• तेरे दर से उठकर |
• दिल को तस्कीन-ए-यार ले डूबी |
• दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन |
• न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है |
• बुझ गया दिल हयात बाकी है |
• मुझ को शिकस्ते दिल का मज़ा याद आ गया |
• ये मिसरा नहीं है |
• रुख़्सत-ए-शबाब |
• वो खफा है तो कोई बात नहीं |
• वो जो आए हयात याद आई |
• वो सवा याद आये भुलाने के बाद |
• वो हमें जिस कदर आज़मा रहे है |
• सुना है वो हमें भुलाने लगे है |
• हम उन्हें वो हमें भुला बैठे |
• हाल-ए-गम उन को सुनाते जाइए |
• हिज्र की शब है और उजाला है |
• हुस्न जब मेहरबान हो तो क्या कीजिए |
Contributed by
dr(capt) alok ranjan
@AwaraDoctor यत्र,तत्र ,सर्वत्र
N.R.I Born in Kashmir, ,Writer,of Many books.C.M.O Psychiatric div,U.S ,Jet air सुनू क्या सिन्धु मैं गर्जन तुम्हारा , स्वयं युग धर्म का हुंकार हूँ मैं /
http://www.awaradoctor.blogspot.com/